best Motivational poems in hindi — Inspirational poems in hindi for success-प्रेरणात्मक कविताये hindi me

Truemotivationalstories
10 min readNov 28, 2020

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Motivational poes in Hindi

प्रेरणात्मक कविताये

दोस्तों हमारी जिंदगी में कभी न कभी एक ऐसा पल आता हैं जब हम पूरी तरह निराश हो जाते हैं, ऐसे वक़्त में हमे किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा दिए गए प्रेरणा काफी जरूत पड़ती हैं। दसूरों लोगो की बातों और अच्छे कामो से मिली हुयी प्रेरणा ही हमे शक्ति देती है की हम कुछ करे और अपनी जिंदगी में आगे बढ़े। दोस्तों हमारी जिंदगी में किस्से, कहानियों और कविताओं ( )का बड़ा योगदान होता हैं हमे बचपन से ही अपने नाना नानियों और दादा , दादीओ द्वारा किस्से , कहानियाँ और कविताएं सुनाई जाती हैं। दोस्तों आज मै आपके लिए कुछ बहुत ही प्रेरणादायी कविताओं को लाया हूँ जो आपमें नई ऊर्जा का संचार करेंगी और आपको अपने अंदर की निराशाओ और भय को दूर करेंगी।

Himalaya poems in hindi

हिमालय

खड़ा हिमालय बता रहा है

डरो न आंधी पानी में।

खड़े रहो तुम अविचल होकर

सब संकट तूफानी में।

डिगो ना अपने प्रण से‚ तो तुम

सब कुछ पा सकते हो प्यार‚

तुम भी ऊंचे उठ सकते हो

छू सकते हो नभ के तारे।

अचल रहा जो अपने पथ पर

लाख मुसीबत आने में‚

मिली सफलता जग में उस को

जीने में मर जाने में।

~ सोहनलाल द्विवेदी

Motivational poems in hindi

Tu yudh kar poem

तू युद्ध कर

तू युद्ध कर

माना हालात प्रतिकूल हैं, रास्तों पर बिछे शूल हैं

रिश्तों पे जम गई धूल है

पर तू खुद अपना अवरोध न बन

तू उठ…… खुद अपनी राह बना………………………..

माना सूरज अँधेरे में खो गया है……

पर रात अभी हुई नहीं, यह तो प्रभात की बेला है

तेरे संग है उम्मीदें, किसने कहा तू अकेला है

तू खुद अपना विहान बन, तू खुद अपना विधान बन………………………..

सत्य की जीत हीं तेरा लक्ष्य हो

अपने मन का धीरज, तू कभी न खो

रण छोड़ने वाले होते हैं कायर

तू तो परमवीर है, तू युद्ध कर — तू युद्ध कर………………………..

इस युद्ध भूमि पर, तू अपनी विजयगाथा लिख

जीतकर के ये जंग, तू बन जा वीर अमिट

तू खुद सर्व समर्थ है, वीरता से जीने का हीं कुछ अर्थ है

तू युद्ध कर — बस युद्ध कर………………………..

- अभिषेक मिश्र

Inspirational poems in hindi for success

Kosish karne walo ki har nhi hoti poem

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है

चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है

मन का विश्वास रगों में साहस भरता है

चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है

आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है

जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है

मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में

बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में

मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो

क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो

जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम

संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम

कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

Motivational poems in hindi

हम होंगे कामयाब / गिरिजाकुमार माथुर

होंगे कामयाब, होंगे कामयाब

हम होंगे कामयाब एक दिन

हो-हो मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास

हम होंगे कामयाब एक दिन

होंगी शांति चारो ओर

होंगी शांति चारो ओर

होंगी शांति चारो ओर एक दिन

हो-हो मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास

होंगी शांति चारो ओर एक दिन

हम चलेंगे साथ-साथ

डाल हाथों में हाथ

हम चलेंगे साथ-साथ एक दिन

हो-हो मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास

हम चलेंगे साथ-साथ एक दिन

नहीं डर किसी का आज

नहीं भय किसी का आज

नहीं डर किसी का आज के दिन

हो-हो मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास

नहीं डर किसी का आज के दिन

हम होंगे कामयाब एक दिन

मरणोंत्‍तर गुंजित गान रहे

सब वांछित वस्तु विधान किए

निज लक्ष्य निरन्तर भेद करो

समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को

Inspirational poems in hindi

Agnipath poem

अग्निपथ / हरिवंश राय बच्चन

वृक्ष हों भले खड़े,

हों घने हों बड़े,

एक पत्र छाँह भी,

माँग मत, माँग मत, माँग मत,

अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

तू न थकेगा कभी,

तू न रुकेगा कभी,

तू न मुड़ेगा कभी,

कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,

अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

यह महान दृश्य है,

चल रहा मनुष्य है,

अश्रु स्वेद रक्त से,

लथपथ लथपथ लथपथ,

अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।

Best Motivational poems in hindi

आगे बढ़े चलेंगे

यदि रक्त बूँद भर भी होगा कहीं बदन में

नस एक भी फड़कती होगी समस्त तन में।

यदि एक भी रहेगी बाक़ी तरंग मन में।

हर एक साँस पर हम आगे बढ़े चलेंगे।

वह लक्ष्य सामने है पीछे नहीं टलेंगे॥

मंज़िल बहुत बड़ी है पर शाम ढल रही है।

सरिता मुसीबतों की आग उबल रही है।

तूफ़ान उठ रहा है, प्रलयाग्नि जल रही है।

हम प्राण होम देंगे, हँसते हुए जलेंगे।

पीछे नहीं टलेंगे, आगे बढ़े चलेंगे॥

अचरज नहीं कि साथी भग जाएँ छोड़ भय में।

घबराएँ क्यों, खड़े हैं भगवान जो हृदय में।

धुन ध्यान में धँसी है, विश्वास है विजय में।

बस और चाहिए क्या, दम एकदम न लेंगे।

जब तक पहुँच न लेंगे, आगे बढ़े चलेंगे॥

Arman poem in hindi

जो धुन के पक्के-सच्चे थे,

Motivational poems in hindi

वीर

सच है, विपत्ति जब आती है,

कायर को ही दहलाती है,

सूरमा नहीं विचलित होते,

क्षण एक नहीं धीरज खोते,

विघ्नों को गले लगाते हैं,

काँटों में राह बनाते हैं।

मुहँ से न कभी उफ़ कहते हैं,

संकट का चरण न गहते हैं,

जो आ पड़ता सब सहते हैं,

उद्योग-निरत नित रहते हैं,

शुलों का मूळ नसाते हैं,

बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं।

है कौन विघ्न ऐसा जग में,

टिक सके आदमी के मग में?

ख़म ठोंक ठेलता है जब नर

पर्वत के जाते पाव उखड़,

मानव जब जोर लगाता है,

पत्थर पानी बन जाता है।

गुन बड़े एक से एक प्रखर,

हैं छिपे मानवों के भितर,

मेंहदी में जैसी लाली हो,

वर्तिका-बीच उजियाली हो,

बत्ती जो नहीं जलाता है,

रोशनी नहीं वह पाता है।

- रामधारी सिंह ‘दिनकर’

लोहे के मर्द

पुरुष वीर बलवान,

देश की शान,

हमारे नौजवान

घायल होकर आये हैं।

कहते हैं, ये पुष्प, दीप,

अक्षत क्यों लाये हो?

हमें कामना नहीं सुयश-विस्तार की,

फूलों के हारों की, जय-जयकार की।

तड़प रही घायल स्वदेश की शान है।

सीमा पर संकट में हिन्दुस्तान है।

ले जाओ आरती, पुष्प, पल्लव हरे,

ले जाओ ये थाल मोदकों ले भरे।

तिलक चढ़ा मत और हृदय में हूक दो,

दे सकते हो तो गोली-बन्दूक दो।

- रामधारी सिंह “दिनकर

कलम या कि तलवार

दो में से क्या तुम्हे चाहिए कलम या कि तलवार

मन में ऊँचे भाव कि तन में शक्ति विजय अपार

अंध कक्ष में बैठ रचोगे ऊँचे मीठे गान

या तलवार पकड़ जीतोगे बाहर का मैदान

कलम देश की बड़ी शक्ति है भाव जगाने वाली,

दिल की नहीं दिमागों में भी आग लगाने वाली

पैदा करती कलम विचारों के जलते अंगारे,

और प्रज्वलित प्राण देश क्या कभी मरेगा मारे

एक भेद है और वहां निर्भय होते नर -नारी,

कलम उगलती आग, जहाँ अक्षर बनते चिंगारी

जहाँ मनुष्यों के भीतर हरदम जलते हैं शोले,

बादल में बिजली होती, होते दिमाग में गोले

जहाँ पालते लोग लहू में हालाहल की धार,

क्या चिंता यदि वहाँ हाथ में नहीं हुई तलवार

- रामधारी सिंह “दिनकर

Motivational poems in hindi

सूरज को नही डूबने दूंगा

अब मैं सूरज को नहीं डूबने दूंगा।

देखो मैंने कंधे चौड़े कर लिये हैं

मुट्ठियाँ मजबूत कर ली हैं

और ढलान पर एड़ियाँ जमाकर

खड़ा होना मैंने सीख लिया है।

घबराओ मत

मैं क्षितिज पर जा रहा हूँ।

सूरज ठीक जब पहाडी से लुढ़कने लगेगा

मैं कंधे अड़ा दूंगा

देखना वह वहीं ठहरा होगा।

अब मैं सूरज को नही डूबने दूँगा।

मैंने सुना है उसके रथ में तुम हो

तुम्हें मैं उतार लाना चाहता हूं

तुम जो स्वाधीनता की प्रतिमा हो

तुम जो साहस की मूर्ति हो

तुम जो धरती का सुख हो

तुम जो कालातीत प्यार हो

तुम जो मेरी धमनी का प्रवाह हो

तुम जो मेरी चेतना का विस्तार हो

तुम्हें मैं उस रथ से उतार लाना चाहता हूं।

रथ के घोड़े

आग उगलते रहें

अब पहिये टस से मस नही होंगे

मैंने अपने कंधे चौड़े कर लिये है।

कौन रोकेगा तुम्हें

मैंने धरती बड़ी कर ली है

अन्न की सुनहरी बालियों से

मैं तुम्हें सजाऊँगा

मैंने सीना खोल लिया है

प्यार के गीतो में मैं तुम्हे गाऊँगा

मैंने दृष्टि बड़ी कर ली है

हर आँखों में तुम्हें सपनों सा फहराऊँगा।

सूरज जायेगा भी तो कहाँ

उसे यहीं रहना होगा

यहीं हमारी सांसों में

हमारी रगों में

हमारे संकल्पों में

हमारे रतजगों में

तुम उदास मत होओ

अब मैं किसी भी सूरज को

नही डूबने दूंगा।

- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,

देखना है ज़ोर कितना बाजू-ए-क़ातिल में है।

रहबरे राहे मुहब्बत, रह न जाना राह में,

लज़्ज़ते सहरा नवर्दी दूरी-ए-मंज़िल में है।

वक़्त आने दे, बता देंगे तुझे, ऐ आसमां!

हम अभी-से क्या बताएं, क्या हमारे दिल में है।

अब न अगले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़,

एक मिट जाने की हरसरत अब दिले ‘बिस्मिल’ में है।

आज मक़तल में ये क़ातिल कह रहा है बार-बार,

क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है!

ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत, तेरे जज़्बों के निसार,

तेरी कुर्बानी का चर्चा गै़र की महफ़िल में है।

Motivational poems in hindi

अभी न होगा मेरा अन्त

अभी न होगा मेरा अन्त

अभी-अभी ही तो आया है

मेरे वन में मृदुल वसन्त-

अभी न होगा मेरा अन्त

हरे-हरे ये पात,

डालियाँ, कलियाँ कोमल गात!

मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर

फेरूँगा निद्रित कलियों पर

जगा एक प्रत्यूष मनोहर

पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,

अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं,

द्वार दिखा दूँगा फिर उनको

है मेरे वे जहाँ अनन्त-

अभी न होगा मेरा अन्त।

मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण,

इसमें कहाँ मृत्यु?

है जीवन ही जीवन

अभी पड़ा है आगे सारा यौवन

स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे, बालक-मन,

मेरे ही अविकसित राग से

विकसित होगा बन्धु, दिगन्त;

अभी न होगा मेरा अन्त।

सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

Motivational poems in hindi

कर्मवीर

देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं

रह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं

काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहीं

भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं

हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले

सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले।

आज करना है जिसे करते उसे हैं आज ही

सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही

मानते जी की हैं, सुनते हैं सदा सबकी कही

जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही

भूल कर वे दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं

कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं ।

जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं

काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं

आज कल करते हुए जो दिन गँवाते हैं नहीं

यत्न करने से कभी जो जी चुराते हैं नहीं

बात है वह कौन जो होती नहीं उनके लिए

वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिए ।

व्योम को छूते हुए दुर्गम पहाड़ों के शिखर

वे घने जंगल जहाँ रहता है तम आठों पहर

गर्जते जल-राशि की उठती हुई ऊँची लहर

आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट

ये कँपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं

भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं ।

- अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध

Motivational poems in hindi

प्रतिबद्ध हूँ, संबद्ध हूँ, आबद्ध हूँ

प्रतिबद्ध हूँ

संबद्ध हूँ

आबद्ध हूँ

प्रतिबद्ध हूँ, जी हाँ, प्रतिबद्ध हूँ -

बहुजन समाज की अनुपल प्रगति के निमित्त -

संकुचित ‘स्व’ की आपाधापी के निषेधार्थ…

अविवेकी भीड़ की ‘भेड़या-धसान’ के खिलाफ़…

अंध-बधिर ‘व्यक्तियों’ को सही राह बतलाने के लिए…

अपने आप को भी ‘व्यामोह’ से बारंबार उबारने की खातिर…

प्रतिबद्ध हूँ, जी हाँ, शतधा प्रतिबद्ध हूँ!

संबद्ध हूँ, जी हाँ, संबद्ध हूँ -

सचर-अचर सृष्टि से…

शीत से, ताप से, धूप से, ओस से, हिमपात से…

राग से, द्वेष से, क्रोध से, घृणा से, हर्ष से, शोक से, उमंग से, आक्रोश से…

निश्चय-अनिश्चय से, संशय-भ्रम से, क्रम से, व्यतिक्रम से…

निष्ठा-अनिष्ठा से, आस्था-अनास्था से, संकल्प-विकल्प से…

जीवन से, मृत्यु से, नाश-निर्माण से, शाप-वरदान से…

उत्थान से, पतन से, प्रकाश से, तिमिर से…

दंभ से, मान से, अणु से, महान से…

लघु-लघुतर-लघुतम से, महा-महाविशाल से…

पल-अनुपल से, काल-महाकाल से…

पृथ्वी-पाताल से, ग्रह-उपग्रह से, निहरिका-जल से…

रिक्त से, शून्य से, व्याप्ति-अव्याप्ति-महाव्याप्ति से…

अथ से, इति से, अस्ति से, नास्ति से…

सबसे और किसी से नहीं

और जाने किस-किस से…

संबद्ध हूँं, जी हॉँ, शतदा संबद्ध हूँ।

रूप-रस-गंध और स्पर्श से, शब्द से…

नाद से, ध्वनि से, स्वर से, इंगित-आकृति से…

सच से, झूठ से, दोनों की मिलावट से…

विधि से, निषेध से, पुण्य से, पाप से…

उज्जवल से, मलिन से, लाभ से, हानि से…

गति से, अगति से, प्रगति से, दुर्गति से…

यश से, कलंक से, नाम-दुर्नाम से…

संबद्ध हूँं, जी हॉँ, शतदा संबद्ध हूँ!

आबद्ध हूँ, जी हाँ आबद्ध हूँ -

स्वजन-परिजन के प्यार की डोर में…

प्रियजन के पलकों की कोर में…

सपनीली रातों के भोर में…

बहुरूपा कल्पना रानी के आलिंगन-पाश में…

तीसरी-चौथी पीढ़ियों के दंतुरित शिशु-सुलभ हास में…

लाख-लाख मुखड़ों के तरुण हुलास में…

आबद्ध हूँ, जी हाँ शतधा आबद्ध हूँ!

- नागार्जुन

मत टूटो / रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’

मत टूटो ओ मेरे जीवन के संचित सपने मत टूटो।

तुमने ही मेरे प्राणों को जलने की रीति सिखाई है,

तुममें ही मेरे गीतों ने विश्वासमयी गति पाई है,

मेरे डूबे-डूबे मन का तुम ही तो ठौर-ठिकाना हो

मेरी आवारा आँखों ने तुमसे ही लगन लगाई है

काँटों से भरी विफलता में आधार न जीने का लूटो

मत टूटो ओ मेरे जीवन के संचित सपने मत टूटो!

तुमको मनुहारा करती है ये दर्दीली प्यासे मेरी

तुम तक न पहुँच क्या पाती है उत्पीड़ित अभिलाषें मेरी

मेरी संतप्त पुकारे तुमको अब तक पूज नहीं पाई

मेरी नश्वरता को क्या जीवन दे न सकीं सांसें मेरी

तुम रीते-रीते ही बीतो — मेरे सुख के घट मत फूटो

मत टूटो ओ मेरे जीवन के संचित सपने मत टूटो!

जीवन भर मैं पथ में भटका, तुमने मुझको खोने न दिया

अर्पण में भी असमर्थ रहा लेकिन तुमने रोने न दिया

मन में जैसी उत्कंठा थी वैसा तो जाग नहीं पाया

लेकिन तुमने क्षण-भर मुझको अपना होकर सोने न दिया

मत मंत्रित मन का दीप बुझा अंधियारी रजनी में छूटो

मत टूटो ओ मेरे जीवन के संचित सपने मत टूटो!

नभ में उग आया शुक्र नया, जीवन की आधी रात ढली

सब दिन सुख दुख में होड़ रही सब दिन पीड़ा में प्रीत पली

उतरी माला-सी सकुचाई मेरी ममता छाया-छल में

इस मध्य निशा में भोर छिपा, इसमें किरणों की बंद गली

कल्पित रस जी भर घूँट चुके अब जीवन के विष भी घूँटो

मत टूटो ओ मेरे जीवन के संचित सपने मत टूटो!

दोस्तो मुझे उम्मीद है आपको कविताएं काफी अच्छी लगी होगी , दोस्तों प्लीज कमेन्ट करके मुझे बताये ये कविताएं कैसी लगी। धन्यवाद

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